रतन टाटा किसी पहचान के मोहताज नहीं है वह देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक है। उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था आज वह 86 साल के हो चुके हैं। वह अरबपति कारोबारी के साथ-साथ बेहद ही दरियादिल के तौर पर भी जाने जाते हैं। उन्होंने टाटा ग्रुप में अपने करियर की शुरुआत 25 की आयु में की। रतन टाटा ने आठवीं कक्षा तक चैंपियन स्कूल मुंबई में अपनी पढ़ाई की। उनकी सफलता इतनी आसान नहीं थी उनकी सफलता के पीछे कई उतार चढ़ाव छिपे थे। रतन टाटा ने अपनी जिंदगी के संघर्षों में कभी हार नहीं मानी। दरअसल महज 10 साल की उम्र में रतन टाटा अपने माता-पिता से अलग हो गए थे। उनकी दादी ने उनका पालन पोषण किया। 1951 में वह पहली बार टाटा संस के अध्यक्ष बने।
रतन टाटा के साहस से जुड़ा हुआ किस्सा यह है कि जब कंपनी के कर्मचारियों की जान बचाने के लिए खुद एक पायलट के तौर पर विमान उड़ाने के लिए तैयार हो गए रतन टाटा दिग्गज बिजनेसमैन के साथ-साथ पायलट भी है। उनके पास प्लेन उड़ाने के लिए लाइसेंस भी है।
90 के दशक में रतन टाटा ने पहली बार इंडिगो लॉन्च की थी । तब कंपनी की सेल उम्मीद के अनुरूप नहीं हो पाई। तब उन्होंने इसे बेचने का मन बनाया। रतन टाटा ने अपनी पैसेंजर कार बिजनेस को Ford motor को बेचने का फैसला किया परंतु बिल्फोर्ड ने उनका मजाक बनाया। उन्हें कहा कि अगर आपको कुछ जानकारी नहीं है तो अपने पैसेंजर कार्ड डिविजन की शुरुआत क्यों की? इसके बाद वह भारत लौट आए बिलफोर्ड के साथ मीटिंग के बाद पैसेंजर कर बिजनेस को बेचने का फैसला टाल दिया। फिर भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांति लाने के लक्ष्य में जुट गए। उन्होंने अपना पूरा फोकस डाटा मोटर को नए मुकाम पर पहुंचाने में लगा दिया और एक दशक से भी कम समय में उन्होंने खुद को इस सेक्टर का बादशाह बनाकर बिल फोर्ड को गलत साबित कर दिया।